कहकाशों से निकल के हम सहराओं में आ गए हैं
फूल सब छूट गए काँटे पाओं में आ गए हैं
वो पल भी देखे हैं इन आँखों ने जब तुम साथ थे
ये भी है के सब मंज़र शब-ऐ-हिज़्र के निगाहों में आ गए हैं
इन सब में मौज़ों की क्या ग़लती है
हम ही हैं जो डूबने दरियाओं में आ गए हैं
तुम साथ होते तो हम ही पूरे कर लेते
वो सब ख़्वाब जो अब दुआओं में आ गए हैं
छोड़ो अब किस से बचेंगे हम
शैतान के सब फ़न जो मसीहाओं में आ गए हैं