कुछ नए-पुराने बहाने दो ज़रा ।
ज़िंदगी को मुस्कुराने दो ज़रा ।।
दुख तो सैलाब है मातम का,
आया है और बह जाने दो ज़रा ।।
बंद मकान खंडहर बन जाते हैं,
जश्न मनाओं और मनाने दो ज़रा ।।
ईद – दीवाली का अंतर मिटाये,
समरसता – धर्म चलाने दो ज़रा ।।
दुनिया चलाये वणिक वृत्ति ‘माही’,
मौजी मन मौज मनाने दो ज़रा ।।