पैगाम आखिरी

जो कि, खत्म होने को है दास्ताँ, अब, पैगाम आया भी तो क्या,
बंद हो चुके, सिलसिले, इक अब, पैगाम भिजवाया भी, तो क्या, 
 
सरे राह बरसो ,हम खड़े रहे, ऐ दोस्त ,उस तेरे इक वायदे पे हम,
और आँख जब, लगने को है, तो अब आ के जगाया, भी तो क्या,
 
रफ्ता रफ्ता, धुंधली,पड़ चुकी है, वो पुरानी ,हसींन यादें. तमाम,
ऐसे में, मेरे मेहरबान, तुझे ऐसी  किसी याद ने, सताया तो क्या,
 
यूँ अब तलक, जीते रहे खुदाया, दिख जाये बस इक झलक तेरी,
मायूस हो चुका ये दिल मासूम अब चेहरा दिखलाया भी तो क्या,
 
उम्र भर तरसे रहे जो, प्यार पाने को हर लम्हा और हर इक धड़ी,
वक़्त आखिरी जो सामने तो अब कुछ पाया या न पाया तो क्या,  
 
जो कि, खत्म होने को है दास्ताँ, अब, पैगाम आया, भी तो क्या,
बंद हो चुके, सिलसिले, इक अब,  पैगाम भिजवाया, भी तो क्या !!


तारीख: 17.06.2017                                    राज भंडारी




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है