जो कि, खत्म होने को है दास्ताँ, अब, पैगाम आया भी तो क्या,
बंद हो चुके, सिलसिले, इक अब, पैगाम भिजवाया भी, तो क्या,
सरे राह बरसो ,हम खड़े रहे, ऐ दोस्त ,उस तेरे इक वायदे पे हम,
और आँख जब, लगने को है, तो अब आ के जगाया, भी तो क्या,
रफ्ता रफ्ता, धुंधली,पड़ चुकी है, वो पुरानी ,हसींन यादें. तमाम,
ऐसे में, मेरे मेहरबान, तुझे ऐसी किसी याद ने, सताया तो क्या,
यूँ अब तलक, जीते रहे खुदाया, दिख जाये बस इक झलक तेरी,
मायूस हो चुका ये दिल मासूम अब चेहरा दिखलाया भी तो क्या,
उम्र भर तरसे रहे जो, प्यार पाने को हर लम्हा और हर इक धड़ी,
वक़्त आखिरी जो सामने तो अब कुछ पाया या न पाया तो क्या,
जो कि, खत्म होने को है दास्ताँ, अब, पैगाम आया, भी तो क्या,
बंद हो चुके, सिलसिले, इक अब, पैगाम भिजवाया, भी तो क्या !!