कुछ कदम तुम भी बढ़ा कर देखते
रिश्ते कहाँ पड़े हैं , उठा कर देखते
कितनी दस्तकें दी दरवाजे पे तुम्हारे
किसी वजह मुझे भी बिठा कर देखते
चाँद क्यूँ न उतर आता तुम्हारे आँगन
कभी अपने छत पर चढ़ा कर देखते
हम इतने भी कमजोर नहीं गणित में
इश्क़ का पहाड़ा हमें पढ़ा कर देखते