लगता है तेरे होंठों पे मेरे लिए कोई पैगाम रक्खा है।
एक अर्से से कुछ उम्मीदों ने बेबसी को थाम रक्खा है।
अब न पीयी जाएगी मय ऐ दोस्तों तुम्हारे साथ।
साकी ने अलग से मेरे लिए एक जाम रक्खा है।
अब न कोई ख्वाहिश, न तमन्ना, न कोई आरज़ू है।
मैंने अपने मर्ज़ी को तेरी मर्ज़ी का गुलाम रक्खा है।
उम्मीद है जब ये हद्द से गुजरेगा तो ख़त्म हो जाएगा।
कुछ तो सोच के ही बुजुर्गों ने दवा दर्द का नाम रक्खा है।
कभी नहीं सुनी होगी ये सिर्फ मेरी ही कहानी है
मैंने कहानी का सबसे अलग अंजाम रक्खा है।