तू और मैं

स्वयं के हृदय से मैं हर रोज़ छला जाता हूँ,
तू मेरी राधा और मैं कृष्ण-सा हो जाता हूँ।

एक ख़फ़ीफ़ पत्थर मैं, मूरत में ढाला जाता हूँ,
शिव का मस्तक तू, मैं गंग की धारा हो जाता हूँ।
वजूद मेरा तुझसे है, तुझमें विलीन हो जाता हूँ,
तू ठहरा सागर और मैं दरिया-सा हो जाता हूँ।

महताब मोहब्बत, सितारे रक़ीब भी हैं यहाँ,
चांदनी नज़र तेरी, मैं भी चकोर बन जाता हूँ।
तू मेरी राधा और मैं कृष्ण-सा हो जाता हूँ।

गर जो संगम हो तुझसे मेरा,
मैं और पवित्र हो जाता हूँ।
तू मेरी हिंदी और मैं उर्दू-सा हो जाता हूँ।
 


तारीख: 01.07.2025                                    अभय सिंह राठौर




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