वो बादल बरसे नहीं

 

छत के क़रीब इतना आके, वो बादल बरसे नहीं,
एक आस नई सी जगाके, वो बादल बरसे नहीं।

हवा में ठंडक घोल दी, मिट्टी को ख़ूब महकाके,
हमारी प्यास बढ़ाके, वो बादल बरसे नहीं।

बहुत गुर्राए, शोर किया, बिजली भी ख़ूब चमकाके,
हमें बस ख़ौफ़ दिखाके, वो बादल बरसे नहीं।

लगा कि अब-तब बूँद गिरेगी, मन को यूँ बहलाके,
 हमको और तरसाके, वो बादल बरसे नहीं।


तारीख: 17.06.2025                                    मुसाफ़िर




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