
ये रिश्ता जल चुका है, तुम राख उठाने आओगी क्या?
जो बुझ गई वो शमा, फिर से जलाने आओगी क्या?
न कोई बात बची, न कोई वास्ता अब बाकी है,
बस यादों की धूल है, तुम उसे उड़ाने आओगी क्या?
जो आँसुओं में बहा दीं हमने अपनी मोहब्बतें,
वो सूखी आँखें, फिर से भिगाने आओगी क्या?
शिकायतें नहीं कोई, बस एक सन्नाटा है,
इस खामोशी को तुम, फिर से तोड़ने आओगी क्या?