ऐसे हम यादों में

आप ही अशआर में दिखते हों जैसे
हम तस्व्वुर में ग़ज़ल कहते हों जैसे

वो  हमारे  सामने हैं अजनबी से
ऐसे हम यादों में ही मिलते हों जैसे

सर्द रातों के किसी अहसास में हम
उम्र भर अहसास को लिखते हों जैसे

खूब बरसीं बारिशें हम पर ग़मों की 
हम ग़मो की बारिश में खिलते हों जैसे

उसने ही तो प्यार को काबा बताया
वो  नमाज़े  इश्क़ में मिलते हों जैसे
 


तारीख: 08.02.2024                                    आकिब जावेद




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