जहन मे सौ सौ बार आया था

जहन मे सौ सौ बार आया था वो
हर बार मगर लगता साया था वो

उसे दिल मे बसा रखा है अभी भी
किस मुँह से कहोगे पराया था वो

फिर भी वजूद मे रहा मेरे मालिक
न जाने कितनों ने  मिटाया था वो

बिखरा हुआ था काटों के दरमियाँ
मुहब्बत से चुनकर उठाया था वो

आज धूप मे जलता है फुटपाथ पे
कभी मां ने छांव मे सुलाया था वो

अंधेरे घरों के खातिर मुश्किल से
कुछ उजाले मांगकर लाया था वो

राख के ढेर ये कह रहे हैं "आलम"
जलाकर किसी ने बुझाया था वो


तारीख: 09.02.2024                                    मारूफ आलम




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