मौसमो में भी रंगत सी छाने लगी
जब ग़ज़ल वो मेरी गुनगुनाने लगी
कर रहा था भुलाने की कोशिश उसे
और वो बेवफ़ा याद आने लगी
जान यम जब मेरी लेने आया तो माँ
अपने आँचल मे मुझको छिपाने लगी
मैं दवा लाया था गम मिटाने को पर
ये दवा ही मेरे गम बढ़ाने लगी
देखकर मुझको रोते हुए ऐ खुदा
माँ भी अश्को को अपने बहाने लगी
देखकर यूँ अकेला मुझे ऐ 'गगन'
वो इशारों से छत पर बुलाने लगी