जुदाइ तेरी ये रात मेरी , यूँ ही अकेले बिता रहा हूँ ।
तुम्हीं को गीतों में गा रहा हूँ , तुम्हीं को ग़ज़लें सुना रहा हूँ ।।
बिना बताए ही रूठ जाना ,बहुत वो उनका मुझे सताना ,
खुलेगीं तेरी सितम की बातें ,वही ग़ज़ल तो सुना रहा हूँ ।।
कभी था सपना तुम्हारा चेहरा ,हंसी थी दुनिया मेरी मग़र अब,
वही जिसे के मैं जी न पाया , वही जवानी बिता रहा हूँ ।।
तमाम बातें, तमाम वादे , सभी था पर आज देखो ,
है मुझसे रूठा खुदा के जैसे ,वही कि जिसका खुदा रहा हूँ ।।
कहा न खुलकर के मैं कभी कुछ, कहा था तुमने न नाम लेना ,
तुम्हीं को गाता रहा मग़र मैं , तुम्हीं को सबसे छुपा रहा हूँ ।।
हिसाब अपना किताब अपना , कि साकी का है जवाब इतना ,
कि पूछते हो सवाल जितना ,शराब उतनी पिला रहा हूँ ।।
मेरे बिना भी न जी सकेगा , ये सोचकर रो रहा कि क्यूँ फिर,
उसीने छोड़ा है आज मुझको , कि जिसके दिल की दुआ रहा हूँ ।।