ज़ुल्फ़ों को चेहरे पे कितना बेशरम रखते हैं
ज़माना अच्छा हो फिर ये भी भरम रखते हैं
ये बारिश छू के उनको उड़ न जाए तो कैसे
बदन में तपिश और साँसों को गरम रखते हैं
कमर जैसे पिसा की मीनार,निगाहें जुम्बिश
अपनी हर इक अदा में कितने हरम रखते हैं
उनको पढ़ कर सब सब पढ़ लिया समझो
वो अपनी तासीर में क्या महरम रखते हैं
वो चलें तो ज़िंदगी ,वो रूक जाएँ तो मौत
अपने वजूद में खुदा का करम रखते हैं