वो सीने से लगकर यूँ रो दिए 

वो सीने से लगकर यूँ रो दिए 
जितने भी पाप थे,सारे धो दिए 

छूके अपनी जादुई निगाहों से 
जवानी के कितने वसंत बो दिए 

हर पल हीरा हर पल जवाहरात 
अपनी ज़िंदगी के पल उसने जो दिए 

साँसों के महीन धागे में चुन चुनकर 
तासीर के बेशकीमती मोती पिरो दिए 

माँगने की इन्तहां और भी होती है क्या 
जो इशारा किया,झोली भर के सो दिए  

मुझे खुदा ही बना दिया अपनी महब्बत से 
खुदको दरिया सा मुझ समन्दर में खो दिए 


तारीख: 21.08.2019                                    सलिल सरोज




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