उड़ते हुये जज़्बात सुखन-कार के, क्षितिज छू जाते है
पल भर में ही परिन्दे, फलक तक पहुँच जाते है
वो नहीं बहकता, ख्वाब बहक जाते है
काई पर रखे कदम, फिसल ही जाते है
बुरे हाल है आशिक़ो के, ना जी पाते न मर पाते है
बाद डूबने के भी, मुर्दे तैरते चले जाते है
खसारा हुआ है मगर, कारोबार किये जाते है
तिश्नगी-ए-मख़मूर सदा, ज़िन्दगी से बैर किये जाते है
सुखन-कार*Poet क्षितिज*Horizon
खसारा*Loss तिश्नगी-ए-मख़मूर* Thirsty Drunkard