मैं चांदनी की डोर लाया हूँ,
अँधेरे में रौशनी बटोर लाया हूँ।
कह दो तिमिर से सिमट जाये,
मैं बुझता चिराग जला लाया हूँ।
कहते रहते हैं अँधेरा मिट नहीं सकता,
मैं निराश अंगारों से मशाल जला लाया हूँ।
रिवायत तो थी की थक कर गिर जाऊं,
मैं पिघलते ख्वाबों का बिस्तर लगा लाया हूँ।
मेरे ख्वाब मुख्तलिफ नहीं सच्चाई से,
मैं नामुमकिन जवाबों से जीत तोड़ लाया हूँ।
सदियाँ नहीं लगतीं फिर जिंदा होने में
मैं नम सी आँखों में दुनिया भर लाया हूँ।
यूँ तो मुश्किल है शब्दों में दुनिया लिखना,
मैं खामोश सी ग़ज़ल मैं जिंदगी भर लाया हूँ।