क़त्ल कीजिए और हँसिए ज़रा 

क़त्ल कीजिए और हँसिए ज़रा 
इस हसीन शहर में बसिए ज़रा 

बाँहों में कैद दरिया तो घुट गया
अब दो बूँद पानी को तरसिए ज़रा  

बेवक़्त बरसात होके दूजों तबाह किया
कभी अपने आँगन में भी बरसिए ज़रा  

सुना बहुत ख़ौफ़ में ज़माने में आपका 
फिर तबियत से खुद पे भी गरजिए ज़रा 

सब काम तो खुदा ही नहीं कर देगा  
आप भी हुज़ूर कुछ रात जगिए ज़रा 


तारीख: 07.04.2020                                    सलिल सरोज




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