क्यों ढकती हो चेहरा सिरहाने से

क्यों ढकती हो चेहरा सिरहाने से

अगर बात बन जाये मुस्कुराने से

 

ये दिल तुझसे मुख़्तलिफ़ तो नहीं

कब तक बचोगी नज़रें टकराने से

 

समायी है मधुशाला इन आखों में

घटेगा नहीं दो बूँद छलक जाने से

 

फासले जो बढे हैं हमारे दरमियाँ

वो सुकून अब कहाँ पास आने से 

 

तुम ही नहीं मयस्सर तन्हाईयों में

क्या गिला शिकवा करें जमाने से 

 

इमां-और-ज़मीर सभी बेच डाला 

सच नहीं बदलता शोर मचाने से

 

सौदागर के लिबास में शैतान यहाँ

चेहरे बदलते नहीं नक़ाब हटाने से 

 

जिसकी जुस्तुजू में तुम हो 'एकांत'

लौटेंगी नहीं कभी वह ग़ज़ल गाने से


तारीख: 20.10.2019                                    किशन नेगी एकांत




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