मैं भी न सोया,वो भी तमाम रात जागते रहे

मैं भी न सोया,वो भी तमाम रात जागते रहे
कभी खुद,कभी चाँद बनके मेरी छत पे ताकते रहे

आँखों से एक झलक भी न ओझल हो जाए
मेरी दहलीज को सितारों से टाँकते रहे

कोई आहट होती है कि साँसें दौड़ पड़ती हैं
फिर इक छुअन को रात भर काँपते रहे

आवारा हवा की तरह तुम जिस्म में मेरी घुल जाते
ख़्वाब दर ख़्वाब इक यही दुआ माँगते रहे


तारीख: 19.08.2019                                    सलिल सरोज




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