मायूसियां जब देखीं खुद्दारों के चेहरों पर
एक हंसी सी दौड़ गई गद्दारों के चेहरों पर
उजले घर शहरों मे गवारा नहीं थे उसको
कालिख पोत गया वो दिवारों के चेहरों पर
मैंने जब पूछा ये बिरानियां कहाँ सजा दूं मैं
बड़ी लरज के बोला बहारों के चेहरों पर
मैंने आसमानों की जानिब देखा ही था कि
बादल आकर छा गए सितारों के चेहरों पर
जमाने मे जब औरतों के हक की बात आईं
शिकन सी आ गई समझदारों के चेहरों पर
दरिया तेरा सूख जाना बहुत खल गया उन्हें
आज उदासी देखी कहारों के चेहरों पर