गज़ल मै बंदिशो अल्फाज से नहीं कहता
फक़त शायरी के लिहाज़ से नहीं कहता ।
कोशिश है कि तबीयत मे लाऊँ तबदीली
महज निभाने को रिवाज़ से नहीं कहता ।
मुझे खौफ ज़रा नहीं जान जाने का यारों
कभी सच को दबी आवाज से नहीं कहता ।
सुन कर जिसे इंसानियत को लग जाए बुरा
गज़लो मे ऐसी बातें समाज से नहीं कहता ।
मेरा माज़ी रहता है मुझसे अक्सर खफ़ा सा
जो गूजरी हम पर कल,आज़ से नहीं कहता