मिलने को व्याकुल

ना जाने मिलने को व्याकुल था कब से
वो लिपटकर मुझसे रोया बड़े अदब से

खुदा के हुक्म को पलकों पर रखता है
कोई फरिश्ता कभी रूठता नही रब से

क्या कोई बूंद अब तक लबों तक पहुँची
या यूहीं प्यासे प्यासे घूम रहे हो तब से

इबादत को अब कजा नही करता हूँ मैं
मौत का खौफ जहन मे बैठा है जब से

बाकी सब घर मे मिल झुलकर रहते हैं
क्या एक तेरा ही इख्तेलाफ है सब से

 


तारीख: 04.02.2024                                    मारूफ आलम




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