वो जो अपने होंठों पर अंगार लिए चलते हैं

वो जो अपने होंठों पर अंगार लिए चलते हैं
मचलते यौवन का चारमीनार लिए चलते हैं

ज़ुल्फ़ में पंजाब,कमर में बिहार लिए चलते हैं
हुश्न का सारा मीना-बाज़ार लिए चलते हैं

जिस मोड़ पर ठहर जाएँ,जिस गली से गुज़र जाएँ
अपने पीछे आशिकों की कतार लिए चलते हैं

कोतवाली बन्द,अदालतों की दलीलें सब रद्द
सारे महकमे को कर बीमार लिए चलते हैं

आँखें काश्मीर,चेहरा चनाब का बहता पानी
क़त्ल करने का सारा औज़ार लिए चलते हैं

जो देख लें तो मुर्दे भी जी उठे कसम से
अपने तबस्सुम में इक संसार लिए चलते हैं


तारीख: 19.08.2019                                    सलिल सरोज




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है