डबडबाई आँख
है सुबह की
सूरज उदास है!
दिन के पाँवों में
पड़ी हैं बेड़ियाँ!
मानो कि यहाँ
घिस रहीं एड़ियाँ!!
सन्नाटे में शोर गुल
क्या कोई
आस पास है!
अंधेरे के हौसले
बुलंद हुए!
अब हैं मशाल के
रिवाज बंद हुए!!
बोई फसल
खेतों की छाती पर
उगी घास है!