धूप के परिंदे

बैठे हैं
दिन की शाखों पर
धूप के परिंदे!

आतप स्नान
अब करती
मही है!
बढ़ती जाती
कर्ज की
बही है!!

आभास हुआ
तारे-
आसमान के बाशिंदे!

फुनगियों 
पर लिखा
किरणों ने पत्र!
पावस की
वर्षा
होगी सर्वत्र!!

बाज-
यकीनन में हैं
मानो खूंखार दरिंदे!

घुंघरू हैं
बूंदों के
पाँव में!
अमृत है मेह
खेतों में
गाँव में!!

दल लगते हैं
पंछी के
सरकारी कारिंदे!


तारीख: 05.03.2024                                    अविनाश ब्यौहार









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