इस दुनिया के लोग बाग पापों की गठरी लादे हैं!
सूख गए होंगे प्रेम भाव के ताल! बाल की जैसे निकाल रहे हैं खाल!!
पगे झूठ की चाशनी में रहनुमाओं के वादे हैं!
हैं रचने लगे नए नए हथकंडे! अवकाश मिला तो धन्य हुआ संडे!!
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