मारते कंकाल

 

दंगों के दौर में एक मकान, जिसके नामपट्ट के ऊपर लिखा था 'हिन्दुस्तान', में राम-रहीम बैठे.थे कि एक सम्प्रदाय के दंगाई आ गये और घर का दरवाज़ा तोड़ दिया। वो दोनों घबरा गये।
राम ने उनसे पूछा, "तुम तो मेरे सम्प्रदाय के हो, तुम्हें किसने और क्यों भेजा है?"
उन्होंने चिल्ला कर उत्तर दिया, "राम ने भेजा है, तुम्हारे घर के बाहर 'हिन्दुस्तान' लिखा है, यह विधर्मियों की भाषा का शब्द है।"
राम कुछ और कहता इतने में दूसरे सम्प्रदाय के दंगाई आ गये,
अब रहीम ने पूछा, "तुम लोग तो मेरी कौम के हो, तुम्हें किसने और क्यों भेजा है?"
उन्होंने भी चिल्ला कर उत्तर दिया, "रहीम ने भेजा है, तुम्हारे घर के बाहर 'हिन्दुस्तान' लिखा है, 'हिन्दू' काफ़िर ही तो होते हैं।"
अब राम-रहीम दोनों ने एक साथ आश्चर्यचकित होकर कहा, "तुम गलत कह रहे हो, हमने तुम्हें नहीं भेजा है, हम दोनों उपद्रव नहीं चाहते।"
लेकिन दोनों सम्प्रदायों के दंगाई कुछ सुनने को तैयार नहीं थे, उनकी आँखों में खून उतरा हुआ था और दिमाग में केवल मारने का भूत सवार था। एक तरफ के लोगों ने अपने राम को अनसुना कर रहीम को मार दिया और दूसरी तरफ के लोगों ने अपने रहीम को अनसुना कर राम को।
और 'हिन्दुस्तान' नाम के उस घर के दरवाज़े पर एक आदमी चमचमाता खद्दर का कुर्ता पहने राम और रहीम दोनों को श्रद्धांजली देने का इंतज़ार कर रहा था। उसकी जेब में उन सभी दंगाईयों के दिमाग रखे हुए थे।


तारीख: 13.03.2020                                    डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी









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