बचपन में मामा कहलाते थे,
मिलने को जब हाथ बढ़ाते थे।
नहीं पकड़ पाते थे मामा को,
तब कहते थे चंदा मामा दूर के।।
मामा के घर नहीं जाते थे,
मामा को ही पास बुलाते थे ।
तब थाल में बैठकर चंदा मामा हमसे मिलने आते थे,
तब कहते उनसे मिलकर चंदा मामा दूर के।
फिर हमने सोचा एक दिन ऐसा यान बनाएंगे,
नहीं बुलाएंगे मामा को हम ही मिलने जाएंगे।।
सोच को अपनी सच कर गए भारत मां के पूत,
मां की राखी मामा के घर ले गए उनके दूत।
मां का मान बढ़ाया पूतों ने बना दिया एक यान,
इसरो के वैज्ञानिकों का सब करते सम्मान।।