( मनहरण कवित्त छन्द )
पाखण्डी कहलाउँगा
नवीन निकेतन बनवाया बहुत बड़ा,
ग्रामवासी गृहप्रवेश पर बुलाऊँगा।
मकान मेरा मनोहर महा महिमायुक्त,
संसार सम्मुख दिखावट दिखलाऊँगा।
पैसा-पानी से लुटेरे लोगों का भरूँ भुवन,
कल्पित काली कथा का पाठ पढ़वाऊँगा।
ढोंग-ढकोसलों में “मारुत” मैं फँसूंगा फिर,
तभी तो महा मूढ़ पाखण्डी कहलाउँगा।।