मैं ये नहीं कहता तू बुरा है
मैं ये नहीं कहता तू नहीं है
तू है बेेशक है
पर मैं भी हूँ, हाँ हूँ
दोनो ही हैं
होने में फर्क क्या?
माना की उड़ रहा है तू, हाँ है
माना तू शिखर पर है, हाँ है
माना मैं जमीं पर हूँ, हांँ हूँ
माना रेंग रहा हूँ मैं, हांँ हूँ
पर मैं भी हूँ,
दोनो ही हैं
होने में फर्क क्या?
देख उस टीले पर
देख वो अटल मन्दिर
जहाँ तेरी उडान खत्म होगी
जहाँ मेरी चढान खत्म होगी
सुन उसकी घंटियाँ
सूँघ मौत की सुगन्ध
हाँ वही मौत का मन्दिर
जहाँ दोनो माथा टेकेंगे
वहीं लगेगा भोग तेरे पंखों का
और बजेगा शंख मेरी अन्तिम चीखों का
सुन, मेरा मरण होगा
सुन, तू भी नहीं होगा
तू भी नहीं
मैं भी नहींं
नहीं होने मैं फर्क क्या
कुछ भी नहीं !!