काव्य मंजूषा आइए...
नीलरात्री की घाट पर
दर्द भरी जिंदगी में ठंठा दें
एक बार फिर आप आइए
विजन पथ पर उदासी धरा के आगे
आंखें हैं या सुमन हैं कि
खिलती रही हैं
सपनों की जलकणों से भरा है या विरह की मोती भरा है
चिड़ियां चुग रही है या
सपनों की दुनिया मेंचूड़ियों की खनक है
मधुर आवाज़ आई क्या ? और लहरों-सी
उन होंठों पर मुस्कान की झलकियां ?