थक हार कर आखिर वो बैठ गया कोस के खुद तक़दीर को बैठ गया । ज़िन्दगी है तो जद्दो-जहद है तय फक़त यही सोंच कर वो बैठ गया । उस से पहले भी कई खड़े हैं दर पे इल्म हो गया जब उसे तो बैठ गया ।
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