आसमान का एक भारी हिस्सा, टूट कर गिरा था घरती के नाजुक सीने पर।
न आसमान उसे रोक सकता था, न धरती उसे संभाल सकती थी,
सोचती हूँ किसी को क्या करना था, कहती हूँ कोई कर भी क्या सकता था।
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