बस की बात

आसमान का 
एक भारी हिस्सा, 
टूट कर गिरा था 
घरती के 
नाजुक सीने पर।

न आसमान 
उसे रोक सकता था,
न धरती 
उसे संभाल सकती थी,

सोचती हूँ
किसी को 
क्या करना था,
कहती हूँ
कोई कर भी 
क्या सकता था।


तारीख: 20.02.2024                                    भावना कुकरेती






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