क्या हो जायेगा सुन राज, यूँ तेरे महफ़िल से उठ के जाने से,
मुस्कुरा रहे थे सब, यूँ गया जो तू किस बहाने से,
हर बार हर एक पे हर जगह तेरा गुस्सा नहीं वाज़िब,
कि बन जाता है काम कई दफे, सिर्फ मुस्कुराने से,
उलझना ही नहीं होता, उन तमाम शातिर से लोगो से,
कि हमेशा लड़ नहीं सकते, हम इस जालिम ज़माने से,
यह सच है कि कोई भी बोला नहीं तेरी इमदाद को,
पर यह भी न सोच लेना तू कि हम सब है बेगाने से,
हर जगह कहां मिलते है, हमें अपने मिज़ाज़ के लोग,
लोगो को बस होता है मतलब, यंहा, पीने-पिलाने से,
जहाँ भी है ,जैसे भी हैं, पर, चंद दोस्त, मौजूद है, तेरे,
तो कुछ हासिल नहीं होगा तुझे, रोज उनको भी आज़माने से !!