अपने ठहराव से घने बादल सा झुम कर निकल
तेरे हौसलों की जद से बाहर कौनसा आलम है
हो अंधेरा घना तो सवेरा नजदीक होता है बहुत
तेरी हर चोट को बता, तूं खुद ही तेरा हा़कम है
मुश्किलात़ के आगोश में बिखर ना जाना कहीं
ये इन्सानों का शौक-ऐ-फितरत बङा आदम है
मूंद कर पलकें कर दिदार इक नयी रोशनी का
बन जा वीणा, फिर कौन तुझसे बेहतर वाद्यम है
जो गिरे तो दर्द की आंखों में आंखे डाल कर उठ
ये ठोकरें तो खुदा कि आजमाइशों का माध्यम है
दिखाई दिया ही कब करते हैं, नींव के पत्थर
जो हुए जमींदोज, ये इमारत उन्हीं पर कायम है