ज़माना याद करेगा तुझे, यूँ जुल्म की, इंतिहा के चलते,
रस्ते, कर दिए जुदा, तूने, बिना, किसी गुनाह, के चलते,
सब कुछ ये दिल में अपने तय कर चुके थे, इक अरसे से ,
पर शायद, रुक गए थे अब तक, मेरी इल्तिज़ा के चलते,
यूँ तो, कोई हक़ नहीं रहा, मुझे कुछ भी सवाल करने का,
बस इतना बता कि दी है, ये सजा, किस गुनाह के चलते,
यूँ तो कोई भी मौका कभी भी दिया ही नहीं मैंने ऐ दोस्त,
पर सच है मैं अब तंग आ चुका था इस इम्तिहाँ के चलते
खता कहते आये है, गरीब, सदिओं से, इस जहाँ में, हज़ूर,
कि उजड़ी हैं, यहाँ, सल्तनते, हमेशा ही शहेंशाह के चलते,
ज़माना याद करेगा तुझे, यूँ जुल्म की, इंतिहा के चलते,
रस्ते, कर दिए जुदा, तूने, बिना, किसी गुनाह, के चलते !!