तस्वीरें जो थी वो जल के राख हो गयीं,
सूखे थे पत्ते तभी तो ये आग हो गयीं।
सवाल तो ये पहले भी उठे होगें,
लेकिन इस बार इनकी औकात हो गयी।
इन्ही तँग गलियों मै खेलते थे दोनों,
बड़ै होते ही अलग-अलग इनकी जात हो गयीं।
कभी सोची ना थी जिन्होंने,
उन्हीं की गलियौं मे एक एसी बात हो गयी।
कुछ ठेकेदारों ने पन्ने क्या पलटे,
अलग-अलग दोनो की किताब हो गयीं।