बारिशें हैं पर्वतों में। प्यार आ जाए खतों में।।
जब कभी भी आजमाया, दूरियाँ हैं कुर्बतों में।
अब मुझे ऐसा लगा है, कुछ नहीं है गुरबतों में।
नीम सा है तो कसैला, स्वाद खोया शर्बतों में।
आज की पीढ़ी फँसी है, मद्य में या फिर लतों में।
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