गिर चुका है मेरी नजरों से वो ज़माने का क्या


गिर चुका है मेरी नजरों से वो ज़माने का क्या
गुजर गया है वक्त मगर उस फसाने का क्या ।

चलो ठीक है आज वो मुतमईन हैं हालात से
कल मझधार में छोड़कर आए बहाने का क्या ।

खुदा ने दी है कुव्वत सोचने समझने,परखने की
जानबूझकर ही जो सोए हैं उन्हें जगाने का क्या ।

आकर मैयत पे हुई है आँखें जो उनकी आज नम
रूठ जब मैं ज़िंदगी से ही गया तो मनाने का क्या

अब तो दर्द भी दुआएं ज़्ख्मों को देने लगें हैं दोस्तों
ज़रा सोंचियें फ़ायदा होगा भी अब सताने का क्या ।

औकात तेरी अजय तू जान ले दो कौड़ी भी नहीं है
भला फ़िर करेगा तू कोशिश नाम कमाने का क्या ।


तारीख: 16.10.2019                                    अजय प्रसाद




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