अखबारों में रोज
बनी रहती है सुर्खी।
छप रहे हैं
बागों में
गंधों के पर्चे।
फूल पर
बैठी शबनम
भौरों में चर्चे।।
यूरेशिया का पुल
हुआ है जैसे तुर्की।
हल्दिया धूप
दिन की बाहों में
सो गई।
पावस आकाश में
काले मेघ
बो गई।।
है होने लगी मानो
लू लपट की कुर्की।
भँवरों का गुंजन है
कोकिला का
राग है।
मानो लगता पलाश
मधुॠतु में
आग है।।
लड़की मीठे गाने में
लेती है मुर्की।