ग्रीष्म ऋतु में
दिनमान यहाँ
जमकर क्रुद्ध हुए।
ताल सूखे, नदी सूखी,
उत्स सूखे हैं।
और धूप के तेवर
बहुत ही रूखे हैं।।
ऋतु, पेड़, पौधे,
बारिश में-
नहाकर शुद्ध हुए।
सोच को मेरी
बोधिसत्व ने चूम लिया।
धूल खाई पनघट को
मैने घूम लिया।।
ज्ञान का
आलोक फैलाने
गौतम बुद्ध हुए।
नेकचलनी तो नहीं
वरन् परमाणु बम है।
सरल स्वभाव नहीं
केवल मिलता ख़म है।।
छोटी-छोटी
बातें लेकर-
भीषण युद्ध हुए।