नालायक़ बेटा

रामानंद बाबू को अस्पताल में भर्ती हुए आज दो महीने हो गये। वे कर्क रोग से ग्रसित हैं। उनकी सेवा-सुश्रुषा करने के लिए उनका सबसे छोटा बेटा बंसी भी उनके साथ अस्पताल में ही रहता है। बंसी की माँ को गुज़रे हुए क़रीब पाँच वर्ष हो चुके हैं। अपनी माँ के देहावसान के समय बंसी तक़रीबन बीस वर्ष का था। 

सुबह के आठ बज रहे हैं। बंसी अपने पिता के लिए फल लाने बाज़ार गया है। तभी नियमित जाँच करने हेतु डॉक्टर रामाश्रय का आगमन हुआ। रामानंद बाबू और डॉक्टर रामाश्रय लगभग एक ही उम्र के हैं। रामानंद बाबू की शारीरिक जाँच करने के उपरांत डॉक्टर साहब ने उनसे पूछा, "आपकी केवल एक ही संतान है क्या?" 

"नहीं डॉक्टर साहब, बंसी के अलावा भी मेरे दो पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हैं," रामानंद बाबू ने जवाब दिया। 

"फिर दो महीनों तक आपसे कोई मिलने क्यों नहीं आया?" डॉक्टर साहब ने विस्मित होकर पूछा। 

"वे सभी सरकारी सेवाओं में उच्च पदों पर आसीन हैं। आप तो जानते ही हैं, अभी के समय में अधिकारियों को साँस लेने तक की फुर्सत नहीं है। वैसे, बंसी से फोन पर सभी मेरी ख़ैरियत पूछते रहते हैं। मेरे सभी बच्चे बचपन से ही होनहार थे। केवल एक बंसी ही नालायक़ था। इसलिए अपने भाई-बहनों की तरह नहीं बन सका," रामानंद बाबू ने बड़ी सहजता से कहा। 

"काश! बंसी जैसा नालायक़ बेटा हर बाप के पास होता..." डॉक्टर साहब यह कहते हुए वहाँ से चले गये।

 


तारीख: 20.04.2020                                    आलोक कौशिक









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