छत पर झरना बहता था
चाँद ज़रा ठहरता था
रातें आँखें मलती थी
और हवाएँ चलती थी
सतरंगी छटा छा जाती थी
जब वो मिलने आती थी।
दीपक राहें तकते थे
बुझे बुझे से जलते थे
सूना दिल और सूजी आँखें
बेमौसम बरसते थे
पर कुदरत मुस्काती थी
जब वो मिलने आती थी।
दिन युग और रातें सदियाँ थी
नयनों से बहती नदियाँ थी
दिन में तारें दिखते थे
रातों में सूरज उगते थे
सारी राहें शर्माती थी
जब वो मिलने आती थी।