पहले बहुत थी मुझे
परवाह ..... पर अब नहीं है
ना गुस्से की... ना प्यार की
ना इकरार की... ना इन्कार की
ना जीत की... ना हार की
मन खोज मे है... जो मेरा है ही नहीं
उससे लडाई करूँ किस अधिकार की
मन तिक्त है... मुक्त है
हथेलियाँ मेरी रिक्त है
अब साफ दृश्य... दृष्टिकोण है
नहीं चाहिए कोई......... सांत्वना
ना कोई भ्रांत है.... चित्त शान्त है
अब नहीं ढुंढना ... सम्भावना
जो आज है इसी पल मे है
जिंदगी नहीं कल मे है
क्यो सोचूँ फिर
कल जो हो सो हो......