परवाह

पहले बहुत थी मुझे
परवाह .....  पर अब नहीं है

ना गुस्से की...  ना प्यार की
ना इकरार की...  ना इन्कार की

ना जीत की...  ना हार की
मन खोज मे है...  जो मेरा है ही नहीं

उससे लडाई करूँ किस अधिकार की
मन तिक्त है...  मुक्त है
हथेलियाँ मेरी रिक्त है

अब साफ दृश्य...  दृष्टिकोण है
नहीं चाहिए कोई......... सांत्वना

ना कोई भ्रांत है....  चित्त शान्त है
अब नहीं ढुंढना ...  सम्भावना

जो आज है इसी पल मे है
जिंदगी नहीं कल मे है
क्यो सोचूँ फिर
कल जो हो सो हो......


तारीख: 06.06.2017                                    साधना सिंह




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है


नीचे पढ़िए इस केटेगरी की और रचनायें