बुढ़ापे में...
जब बाल सफेद हो जाएंगे,
कमर झुक जाएगी,
आंखों पर मोटा चश्मा लग जायेगा,
पर सीना तब भी चौड़ा रहेगा।
अपने नाती-पोतों और गांव-जंवार वालों को
गर्व से बताया करूंगा—
कि जब मैं फौज में 'जवान' था,
और उम्र से भी जवान था,
तब 21 वर्ष की तीखी युवावस्था में,
मैंने कारगिल युद्ध में,
पूरे जोश और जुनून से भाग लिया था।
तथा
उस युद्ध के सबसे बड़े नायक,
परमवीर चक्र विजेता,
कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव,
के साथ सेल्फी भी ली थी।
मैं अगली पीढ़ी को यह बताना
कभी नहीं भूलूंगा—
कि इस देश के असली हीरो वे हैं,
जो मां भारती की आन-बान-शान के लिए,
अपनी जान की बाजी लगा देते हैं,
प्राणोत्सर्ग तक कर देते हैं।
असली नायक वे हैं,
जो तिरंगे को शिखर पर फहराने के लिए,
अपनी सांसों की आहुति दे देते हैं,
अपने प्राणों की बलि दे देते हैं।
न कि वे भांड,
जिन्हें आज की पीढ़ी हीरो/हेरोइन कहती है,
और वे चंद नोटों के बदले,
अपना जमीर का सौदा कर लेते हैं,
अपना किरदार बेच देते हैं।
न ही वे खिलाड़ी,
जो सजे हुए मंचों पर देश को भूल जाते हैं,
और कुछ सिक्कों की खनक के आगे
उन्हें मां भारती की चीखें
बिल्कुल भी सुनाई नहीं देतीं।
और
वे राजनेता तो हरगिज़ नहीं,
जो 'महलों' के एसी कमरे में बैठकर,
पर्वतों की दुर्गम ऊंचाई और समुद्र की असीम गहराई में,
अदम्य शौर्य का प्रदर्शन करने वाले रणबांकुरों से,
उनकी बहादुरी के सबूत मांगते फिरते हैं।
जय हिंद। जय भारत।
#KargilVijayDiwas
(विनय सिंह बैस)
गर्वित एयर वेटरन