मेरे कई अफ़साने दबे हैं—
रात के टूटे हुए टुकड़े,
अधूरी नींद की शिकन,
करवटों की थकान,
और गीली आँखों में चमकते
उन सपनों के जुगनू
जो कभी आए ही नहीं।
तकिए के नीचे
रखी हैं उदास यादों की चिट्ठियाँ,
बेचैन शामों की
कुछ मुरझाई कहानियाँ,
सूखे हुए आँसुओं के
कुछ मैले-कुचैले धब्बे—
जो किसी उदास रात में
मेरी आँखों से गिरे थे।
तकिए के नीचे
एक पुरानी किताब भी दबी है,
जिसकी पन्नों के बीच
कुछ फूल हैं मुर्झाए,
और कुछ पंक्तियाँ,
जो मैंने कभी पूरी नहीं कीं—
बस लिखा, काटा, मिटाया
और भूल गया।
तकिए के नीचे
छुपी हैं मेरी कुछ ख़ामोशियाँ,
कुछ अधूरी बातें,
कुछ खोई हुई आवाज़ें,
और कुछ लम्हे ऐसे भी
जो काश लौट आएँ,
पर अब सिर्फ़
ख़ालीपन छोड़ जाते हैं।
हर रात मैं
इन्हें तकिए के नीचे
छुपाकर सोता हूँ—
शायद कभी
नींद के साथ ये भी
चुपके से चले जाएँ,
पर ये वहीं रहते हैं,
सुबह होने तक,
मेरे सिरहाने के नीचे,
चुपचाप,
मेरे जागने का इंतज़ार करते हुए।