युवा

मत रोको उन्हें, उड़ जाने दो 
पिंजड़ा तोड़कर
झड़ जाने दो पतझड़
और उग आने दो
नई कोपलों को
लेने दो उन्हें भी 
बारिश की बूंदों का मीठा स्वाद             
लड़ने दो तेज तूफानों से,
मत रोको समन्दर की नई लहरों को 
टकराने दो उन्हें चट्टानों से बार-बार
बस ध्यान से सुनो
टकराने, टूटने और बनने के बीच का संगीत...
 
खोल दो खि‍ड़की और
दरवाजों के पहरों को
आने दो तेज हवा के झोकों को
और उड़ जाने दो बरसों से जमीं धूल की परतें,
क्योंकि हवा के साथ आएगा प्रकाश भी तो
अंधेरे के द्वार तोड़कर
और तब दुनिया मिल सकेगी 
इस पीढ़ी की नई शक्ल और सूरत से...
मत रोको उन्हें उड़ जाने दो...


तारीख: 14.06.2017                                    अभिषेक सहज




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