दुनिया की रंजिशें
ये बाज़ारू बातें
ये आपस की नफ़रत
लोगों की फितरत
गरीबों की बस्ती
अमीरों की मस्ती
कोई अज़मत का सिकंदर
जज़्बात का भवंडर
कोई ज़िन्दगी में लाचार
कभी उलझनों का शिकार
फिर भी तकदीर पे यकीन
ख्वाइशों की अफ़ीम
और कुछ ज़रूरत की तालीम
कोई मोहब्बत की तलबगार
तो कोई करने निकला इज़हार
चेहरों पर आजमाइशें
सीरत से अंजान
रातों की ख़ामोशी
इन ख़ामोशी के गहराई
छुपे हैं कुछ राज़
जिसपे करते है ऐतराज
अब भी है दिल नाराज़
जिन कुरबतों पे है नाज़
अब है ये एक दौर
जब गौर से देखो तो
इन ज़रूरतों की दुनिया में
मुनासिब है ये कहना
कुछ मुश्किल है यहां रहना ।