मरती हैं कुछ अच्छी कविताएँ, कहानियाँ शेर,गजलें और मुक्तक भी । उपन्यास,आलेख के साथ हर सहित्यिक विधा । बस तरीका बेहद अलग है । कोई रूदन नहीं होता । न उठती है अर्थी कोई । न कोई मातमपुर्सी । सिर्फ़ हो जाती हैं लोगो के उपेक्षा का शिकार ।
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