जीना मुश्किल,मरना आसान हो गया

जीना मुश्किल,मरना आसान हो गया
हर दूसरा घर कोई श्मशान हो गया

माँ कहीं,बाप कहीं,बेटा कहीं,बेटी कहीं
एक ही घर में सब अन्जान हो गया

शहरों में नौकरियाँ खूब बिका करती हैं
इस अफवाह में गाँव मेरा वीरान हो गया

मन्दिर की घंटियाँ वो मस्जिद की अजानें
दोगले सियासतदानों की दुकान हो गया

प्यार,हमदर्दी,जज़्बात,अहसास,इंसानियत
"प्राइस टैग" लगा बाजारू सामान हो गया

बँटवारे की खींचातानी में ये हादसा हुआ
जो मुकम्मल घर था,खाली मकान हो गया


तारीख: 21.08.2019                                    सलिल सरोज




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है